मैं पेड़ नहीं
शहर हूँ मैं
एक भरा पूरा शहर.
हजारों घर हैं परिंदों के,
इनकी चहचहाहट के सप्तम सुर भी.
हजारों कोटर हैं
गिलहरियों के,
इनकी चिक-चिक की मद्धम लय भी.
केचुओं और कीटों की
लाखों बांबियां
मेरी जड़ों में
और आठ-दस झूले
अल्हड नवयौवनाओं के.
अब समझे
पेड़ नहीं,
शहर हूँ मैं,
जहां चलती है
बस एक ही सत्ता
प्रकृति की,
मेरी लाखों शाखाएँ
अरबों पत्ते,
संरक्षित व सुरक्षित करते हैं
लाखों-करोड़ों जीवन
पलते हैं अनगिनत सपने
मेरी शाखों पर,
फलती-फूलती हैं कई-कई पीढ़ियां
मेरी आगोश में.
मूक साक्षी हूँ मैं
पीढ़ियों के प्रेम-व्यापार का,
शर्म से झुकती पलकों का
पत्ते बरसा कर सम्मान करता हूँ मैं.
मानसिक द्वंद से थका हुआ प्राणी
विश्राम पाता है मेरी छाया तले,
उसकी आँखों में चलता हुआ
भूत और वर्तमान का चलचित्र
जाने क्यों मुझे द्रवित करता है.
आकांक्षाओं व इच्छाओं का मूक दर्शक हूँ मैं,
पक्षियों के सुर संगीत व अपनी शीतल हवा
वार देता हूँ उन पर मैं
उनका दुःख हर कर
नवजीवन संचार का
आखिर मैं भी तो
एक अंग हूँ
प्रकृति का.
भले ही शहर/गाँव/देश हूँ मैं.
बंग्लादेश के टुकड़े होंगे
2 हफ़्ते पहले
19 टिप्पणियां:
एक जोरदार कविता..गीत कुछ कहता है.. शहर का एक प्राकृतिक चित्रण बहुत बढ़िया लगा..धन्यवाद अलका जी
अलका जी,
पेड़ को माध्यम बनाकर
सकारात्मक नज़रिये
और संवेदनाओं की सुंदर प्रस्तुति
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बहुत सुंदर कविता कही आप ने इस पेड को माध्यम बना कर.
धन्यवाद
मैं पेड़ नहीं
शहर हूँ मैं
एक भरा पूरा शहर.
--शानदार भाव...बहुत अच्छी अभि्व्यक्ति!!
बेहद रोचक और मार्मिक।
Wah, bahut hi bhawpurn kavita.
badhai.. :)
Apki rachna ka koi jabab nahi.
arthpur rachna ke liye badhai swikaren :)
alka ji , behad sundar kavita , maano prakruti poori tarah se khil aayi ho ... waah shabdo ka aisa sundar chitran..
aabhar
बहुत ही सुंदर कविता ।
Apki rachna ka koi jabab nahi.
arthpur rachna ke liye badhai swikaren :
आकांक्षाओं व इच्छाओं का मूक दर्शक हूँ मैं,
पक्षियों के सुर संगीत व अपनी शीतल हवा
वार देता हूँ उन पर मैं
उनका दुःख हर कर
नवजीवन संचार का
आखिर मैं भी तो
एक अंग हूँ
प्रकृति का.
भले ही शहर/गाँव/देश हूँ मैं.
Behad sundar khayal hai!
हर बात सोलह आने सच है. प्रकृति को समेटे और उस ही को समर्पित एक बहुत सटीक कविता
aapke mere blog par comment chodne se aapke blog ka nisha mila bahut hee detail me tree ka tarah-tarah se hamare liye paksheeyo aur bhee sharnarthiyo ke liye madad karane ka chitran manmohak hai.
"मैं पेड़ नहीं
शहर हूँ मैं"
एक भरा पूरा शहर.
"आकांक्षाओं व इच्छाओं का मूक दर्शक हूँ मैं,
पक्षियों के सुर संगीत व अपनी शीतल हवा
वार देता हूँ उन पर मैं"
पेड़ों और प्रकृति के प्रति सचेतऔर सजग रहने के लिए इससे बढ़िया और क्या सन्देश होगा. धन्यवाद्.
samwednaon ko chhooti hui. bahut khoob.
bahut sundar kavita...
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
प्रत्येक रविवार प्रातः 10 बजे C.M. Quiz
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
क्रियेटिव मंच
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
kya khub ped hai.. ped nahi ye to shahar hai... umda rachna...
एक टिप्पणी भेजें