आज जी भर के खिलखिलाए हैं
मुद्दतों बाद , लफ्ज़ आए हैं
लफ्ज़ टपके हैं उसकी आंखों से
उसने आंसू नहीं गिराए हैं
मिल गयी हैं वुजूद को आँखें
लफ्ज़ जब से नज़र आए हैं
हम तो खामोशियों के पर्वत से
लफ्ज़ कुछ ही तराश पाये हैं
लफ्ज़ बाक़ी रहेंगे महशर तक
इनके सर पर खुदा के साए हैं
ये सुखन और ये मआनी सब
लफ्ज़ की पालकी उठाए हैं
लफ्ज़ तनहाइयों में बजते हैं
जैसे घुंघरू पहन के आए हैं
लफ्ज़ की रोशनी में हम तुमसे
जान पहचान करने आए हैं
कानपुर
9450936917
मुद्दतों बाद , लफ्ज़ आए हैं
लफ्ज़ टपके हैं उसकी आंखों से
उसने आंसू नहीं गिराए हैं
मिल गयी हैं वुजूद को आँखें
लफ्ज़ जब से नज़र आए हैं
हम तो खामोशियों के पर्वत से
लफ्ज़ कुछ ही तराश पाये हैं
लफ्ज़ बाक़ी रहेंगे महशर तक
इनके सर पर खुदा के साए हैं
ये सुखन और ये मआनी सब
लफ्ज़ की पालकी उठाए हैं
लफ्ज़ तनहाइयों में बजते हैं
जैसे घुंघरू पहन के आए हैं
लफ्ज़ की रोशनी में हम तुमसे
जान पहचान करने आए हैं
कानपुर
9450936917