शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

ग़ज़ल ,राजेन्द्र तिवारी ,कानपुर

मुफलिस की जवानी के लिए सोचता है कौन
अब आँख के पानी के लिए सोचता है कौन

प्यास अपनी बुझाने में मसरूफ हैं सभी लोग
दरिया की रवानी के लिए सोचता है कौन

बेताब नयी नस्ल है पहचान को अपनी
पुरखों की निशानी के लिए सोचता है कौन

मिट्टी के खिलौनों पे फ़िदा होती है दुनिया
मिट्टी की कहानी के लिए सोचता है कौन

सब अपने लिए करते हैं लफ्जों की तिजारत
लफ्जों की मआनी के लिए सोचता है कौन?
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