शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

गज़ल - सर्वत एम्.

आप सभी को पता होगा कि सर्वत साहब इन दिनों अपने ब्लॉग पर गजलें पोस्ट नहीं कर रहे हैं. मामला क्या है, यह तो वही जानें. मुझे अभी एक कवि गोष्ठी में शेर सुनाते मिल गए और मैं ने उन्हें लिख लिया. उनकी आज्ञा लिए बिना पोस्ट करने का साहस, नहीं दुस्साहस आपकी सेवा में प्रस्तुत है-

जो हम को थी, वो बीमारी लगी ना!
हंसी तुम को भी सिसकारी लगी ना!

सफर आसान है, तुम कह रहे थे 
कदम रखते ही दुश्वारी लगी ना!

कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है 
बदन पर आज इक आरी लगी ना!

समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी 
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना!

मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!
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