सुख के सागर रीत चके हैं
आज महाभारत से पहले
कौरव बाजी जीत चुके हैं
आँगन आँगन सन्नाटा है
पूरे देश के साहित्यकारों का मंच
मेरे दिल में अब वो समाने लगे है
मोहब्बत की दुनिया बसाने लगे हैं।
वो जब सामने मुस्कुराने लगे हैं
मेरे दिल पे बिजली गिराने लगे हैं।
ख्यालों में हरदम वो आने लगे हैं
मेरे दिल की दुनिया सजाने लगे हैं।
करीब उनके पहुंचे मोहब्बत में लेकिन
सफर में वहां तक जमाने लगे हैं।
हैं बेदर्द कितने जमाने के इन्सां
जो शमऐ मोहब्बत बुझाने लगे हैं।
मोहब्बत हुई है मुझे जब से उनसे
मुझे हर घडी वो सताने लगे हैं ।
मोहब्बत की तकमील काम आ गई है
की वो ख्वाब में आने जाने लगे हैं।
मिले हैं कभी जब सरे राह में वो
निगाहें वो मुझसे चुराने लगे हैं।
रकीबों में होती है एहसास चर्चा
ग़ज़ल तेरी दुश्मन भी गाने लगे हैं।
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कोई मन को भा जाए चुन लेती हैं
आंखों का क्या है सपने बुन लेती हैं
लेकिन सपने केवल सपने होते हैं।
खाली कमरा चीजों से भर सकता है
कोई कितना दुःख हल्का कर सकता है
हमने बाहर भीतर से घर आंगन में
घायल होकर भी देखा है जीवन में
सारे दर्द अकेले सहने होते हैं
लेकिन सपने -------------।
पीडाओं की हद किस-किस को दिखलायें
आख़िर अपना कद किस-किस को दिखलायें
पौधा वृक्ष बनेगा ये आशा भी है
सबको फल पाने की अभिलाषा भी है
उनकी बात करो जो बौने होते हैं
लेकिन सपने --------------------------।
क्या होता है बारहमासा क्या जाने
गर्मी जाड़ा धूप कुहासा क्या जाने
saari चिंता अख़बारों की खबरों पर
बैठे रहे किनारे कब थे लहरों पर
जिनके नाखून चिकने-चिकने होतe hain
लेकिन सपने --------------------------।
सर्वत जमाल
हथेली देखता हूँ !पहेली देखता हूँ !!
सभी ने पर निकले
मगर हर पांव छाले
जुबां खुलती नहीं है
अधर पर बंद ताले
कुहासा बढ़ रहा है
अँधेरा चढ़ रहा है
यहाँ सूरज किरन भी , अकेली देखता हूँ !
हथेली ----------------------------! !
लगा है फिर अडंगा
हुआ इन्सान नंगा
नगर देहात बस्ती
सवेरे शाम दंगा
लगे फुफकारने सब
नजर के सामने अब
निराला खंडहर है , हवेली देखता हूँ !
हथेली ------------------------!!
घुटन स्वीकार है क्या
हवा बीमार है क्या
सुगन्धित वाटिका से
किसी को प्यार है क्या
नवेले आचरण से
निराले व्याकरण से
सफेदी भूल बैठी , चमेली देखता हूँ !
हथेली -------------------------!!
-------सर्वत जमाल