रविवार, 14 फ़रवरी 2010

नज़्म - सूर्य भानु गुप्त

हिंदी गजलों-नज्मों-कविताओं के फलक पर सूर्य भानु गुप्त एक बड़ा नाम है. हिंदी साहित्य से जरा भी रूचि रखने वाला पाठक इस नाम से अपिरिचित नहीं. लहजे की तल्खी और व्यंग्य के धार क्या होती है, यह रचना में देखें.

कुर्सियाने के नए तौर निकल आते हैं
अब तो लगता है किसी से न मरेगा रावण
एक सर काटिए सौ और निकल आते हैं.

ऐसा माहौल है, गोया न कभी लौटेंगे
उम्र भर क़ैद से छूटेंगी न अब सीता जी
राम लगता है अयोध्या में नहीं लौटेंगे.

इंतजार और अभी दोस्तों करना होगा
रामलीला जरा कलयुग में खिंचेगी लम्बी
लेकिन यह तय है कि रावण को तो मरना होगा.
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