रविवार, 15 मार्च 2009

घनाक्षरी ;सरस कपूर लखनऊ [उ.प्र.]

कुंदन की माल भाल बिंदी सजी लाल-लाल, मूंगा मौक्तियों से सजी नथ अभिराम है।
वरद करों में लाल चूडियाँ खनक रहीं ,गूंजे अनहद नाद धन्य धरा धाम है।
हो रहा तरंगित है प्यार का अगाध सिन्धु ,गोटेदार चुनरी की लालिमा ललाम है।
कौन न सराहे भाग्य माँ के चरणों में पड़ी, पायल जो प्रति -पल करती प्रणाम है।

शक्ति जग जाती जब जगती अखंड ज्योति ,भक्ति जन मानस विभोर कर देती है।
रस का अनंत स्रोत फूट पड़ता है,अम्ब ,प्रेम से रसा को सराबोर कर देती है।
ताकते नयन अपलक घनानंद झरें,डोलता ह्रदय मन मोर कर देती है।
रोम रोम रमता रमा के पद पंकजों में , परम प्रकाश पोर-पोर भर देती है।

रस ही विलीन होता जा रहा रसा का अम्ब, कामना है विश्व में न और खटपट हो।
कलम, कृपाण से अधिक उपयोगी बने, धैर्य,शील,सौम्यता का वास घट-घट हो।
तार-तार 'काव्य ' का सितार बन झंकृत हो,शान्ति बरसाए स्वरअक्षय सुबट हो।
कर दो कृपा माँ मम मानस मराल पर , हो कर सवार वीणावादिनी प्रकट हो।

माता यदि आपने संभाला नहीं होता मुझे ,कौडियों के मोल में भी कहीं नहीं बिकता।
weena हंसवाहिनी की झंकृत न होती यदि ,बदल न पाती मेरी हीन मानसिकता ।
साँस होती अस्थिर प्रपंच पे सवार होती ,जीवन का स्यंदन कहीं भी नहीं टिकता।
सिकता सी चेतना न रस का परस पाती ,'सरस 'बना न पाती रसा की रसिकता।

आपकी कृपा से सत्य होता उद्घाटित माँ ,मेरे उर -चक्षु को सदैव खोले रखना ।
अपना दुलार अम्ब देना भरपूर मुझे ,शब्द सीकरों में रस घोले-घोले रखना ।
और कुछ देना या न देना भाग्य में ,परन्तु ,भक्ति की अनंत निधि बिन तोले रखना।
कामना है गोद में तुम्हारी किलकारी भरु , लाड भरा हाथ मातु पोले-पोले रखना।






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