शनिवार, 11 अप्रैल 2009

कवित्त : अरविन्द कुमार झा ,ऐशबाग ,लखनऊ[उ.प्र.]

एक नव वधू जब पति से ही पूछ बैठी
जीवन की निज कुछ बातें भी बतायेंगे ।
पति बोले अच्छा लगे या कि लगे तुम्हे बुरा
हम थे आवारा ये न आप से छिपाएंगे ।
प्रश्न अब पत्नी से किया है पतिदेव ने कि
शादी पूर्व आपने किया है क्या, बतायेंगे?
बोली फिर पत्नी कैसी पूछ-ताछ है ये अब
कहिये क्या शादी बाद कुंडली मिलायेंगे॥

ग़ज़ल ;भोलानाथ 'अधीर' प्रतापगढ़ ,[उ.प्र.]

मेरा हमराज वही मेरे मुकाबिल भी वही
मेरा रखवाला वही है मेरा कातिल भी वही
जिसने खतरे से खबरदार किया था मुझको
मेरी बर्बादी के आमाल में शामिल भी वही
मैंने जिसके लिए दरवाजे सभी बंद किए
क्या पता मेरे दिल में था दाखिल भी वही
छोड़कर गैर की महफ़िल मैं चला आया यहाँ
है यहाँ वैसा ही माहौल यह महफ़िल भी वही
सच तो यह है कि ' अधीर ' इस से रहा नावाकिफ
मेरा रस्ता भी वही है मेरी मंजिल भी वही ।

गीत ; संकटा पसाद श्रीवास्तवा 'बंधू श्री' करनैलगंज[उ.प्र.]

जाने क्यों हम खींच रहे हैं ,रोज लकीरें पानी पर
मुझको आती लाज आज है खुशबूदार जवानी पर।
रोज पालते घाव ह्रदय में,
और उन्हें सहलाते हैं
झूठ-सांच की मरहम पट्टी
से मन को बहलाते हैं
वंशज हैं राणा प्रताप के
और शिवाजी के शागिर्द

दाग लगाकर बैठ गये हम, वीरों की कुर्बानी पर
आती मुझको ----------------------------।
पीट-पीट कर ढोल सड़क पर
करते ता-ता-थैया रोज
डुबो रहे गांधी ,सुभाष औ
शेखर वाली नैया रोज
कभी अहिंसा,कभी शान्ति
तो कभी निपट भाई-चारा
सोच-सोच कर तंग आ चुके ,अपनी इस नादानी पर
आती मुझको------------------------------।
भले तिरंगा लहरायें हम
अम्बर की ऊंचाई तक
पटी न मुझसे छप्पन वर्षों
में कटुता की खाई तक
माना मेरी सैन्य -शक्ति से
सारा जग थर्राता है
फिर भी करते म्याऊँ -म्याऊँ चूहे की मनमानी पर
आती मुझको-------------------------------.

ग़ज़ल:के० के० सिंह मयंक अकबराबादी [उ.प्र.]

गीत बिना सूना है साज
बोलो क्या है इसका राज।
दुनिया तक क्यों पहुंची बात
जब तू था मेरा हमराज।
जिसका हो अंजाम बुरा
कौन करे उसका आगाज़।
हर मोमिन का फ़र्ज़ यही है
पाँच वक्त की पढ़े नमाज़।
इश्क ने चलकर राहे वफा में
हुस्न को बख्शा है एजाज़।
उनकी बज्म में लेकर पहुँची
मुझको तखैयुल की परवाज़।
अपनी ग़ज़ल में लाओ मयंक
मीरो-गालिब के अंदाज़।
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