वो आँखों ही आँखों में मुझे तोल रहा है
लब उसके हैं खामोश मगर बोल रहा है .
मैं जानता हूँ हिर्सो-हवस हैं बुरे फिर भी
मैं देख रहा हूँ मेरा मन डोल रहा है .
अब देखो वो भी मुल्क पढ़ाता है हमें पाठ
जिसका न कुछ इतिहास न भूगोल रहा है
मुद्दत हुई है फिर भी तेरे प्यार का वो बोल
कानों में मेरे आज भी रस घोल रहा है
ईमान का तो मोल ही अब कुछ भी नहीं है
वैसे ये कभी मुल्क में अनमोल रहा है
शायद वो किसी और ही ग्रह का है निवासी
जो सबसे बड़े प्यार से हंस-बोल रहा है
गैरों के असर राजे-निहाँ मुझको बताकर
वो अपना ही खुद राजे-निहाँ खोल रहा है
सम्पर्क....२६८/४६/६६ डी, खजुहा, तकिया चाँद अली शाह, लखनऊ-२२६००४.
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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
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