मंगलवार, 9 नवंबर 2010

गुरेज़





ये संजय मिश्रा की नज़्म उन्हें मुबारकबाद देते हुए प्रकाशित कर रहे हैं .
मुबारकबाद दो उपलब्धियों के लिए-
१- इन्होने ब्लॉग जगत में अपनी धमाकेदार उपस्थिति निम्न उन्वान से जतायी है-
http://adbiichaupaal.blogspot.com/
2- संजय मिश्रा जी ने  अब कविताकोश में भी अपनी जगह बना ली है
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फ़रेब देती है हमको दुनिया
 कदम कदम पर
हमें पता ही नहीं कि हमने
फ़रेब खाएं हैं कितने अब तक
ये रिश्ते-नातों का खोखलापन
यहाँ दिखावे की सब मुहब्बत
फ़रेब खा कर भी मुस्कुराती
है मसलेहत  की असीर बनकर
यूं ही जियेंगे  न जाने कब तक
हमारी आँखें कभी खुलेंगी? सवाल ये है
कि हमको अपनी खबर नहीं है
हमारी मुट्ठी से वक़्त पल-पल निकल रहा है 
कभी तो अपनी तरह से जीने का ढंग आए
हमारे जीवन में भी खूशी की उमंग आए
कि ये करिश्मा न खुद से होगा
सबील इसकी हमें ही करना पड़ेगी खुद से
जो मसलेहत से गुरेज़ करना भी आ गया तो
हमें बड़ा ही सुकून होगा 
हक़ीक़तों का करेंगे हम सामना भी डटकर
और आईने में
 हमें हमारी ही अपनी सूरत दिखाई देगी
हमें किसी से फ़रेब खाने की 
फिर ज़रुरत नहीं रहेगी!!! 
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