मंगलवार, 29 सितंबर 2009

ग़ज़ल ; सत्यप्रकाश शर्मा

बयान देता है ख़ुद आसमान ,अच्छी है
नज़र न लगे परिंदे ! उड़ान अच्छी है

न खुशकलाम अगर हो सको तो कम से कम
ख़मोश ही रहो ,दिल की ज़बान अच्छी है

चमकते लफ्ज़ निकाले हैं इन अंधेरों से
हमारे वास्ते दिल की खदान अच्छी है

ये जिन्दगी है ,यहाँ गम के खूब जंगल हैं
कहीं मिले तो खुशी की मचान अच्छी है

तुम्हारा दिल है ,तुम अपने ख़याल ख़ुद जानो
हमारे मुंह में हमारी ज़बान अच्छी है

खुशी का चेहरा उतरता है वक्त के आगे
मगर जो घटती नहीं ,गम की शान अच्छी है

ये जानता हूँ मुसीबत है प्यार में फ़िर भी
रहे बला से ,मुसीबत में जान अच्छी है

'प्रकाश' शेर कहो इस तरह कि लोग कहें
तुम्हारा दिल भी है अच्छा ,जबान अच्छी है ।
२५४ ,नवशील धाम
कल्यानपुर ,बिठूर मार्ग
कानपुर
9450936917

रविवार, 20 सितंबर 2009

गजल ; अंसार कंबरी ,कानपुर [उ. प्र.]

एक तरफा वहाँ फैसला हो गया
मैं बुरा हो गया ,वो भला हो गया

पूजते ही रहे हम जिसे उम्र भर
आज उसको भी हमसे गिला हो गया

जिस तरफ देखिये प्यास ही प्यास है
क्या हमारा शहर कर्बला हो गया

चाँद मेरी पहुँच से बहुत दूर था
आपसे भी वही फासला हो गया

एक साया मेरे साथ था कम्बरी
यूं लगा जैसे मैं काफिला हो गया ।
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