रविवार, 20 सितंबर 2009

गजल ; अंसार कंबरी ,कानपुर [उ. प्र.]

एक तरफा वहाँ फैसला हो गया
मैं बुरा हो गया ,वो भला हो गया

पूजते ही रहे हम जिसे उम्र भर
आज उसको भी हमसे गिला हो गया

जिस तरफ देखिये प्यास ही प्यास है
क्या हमारा शहर कर्बला हो गया

चाँद मेरी पहुँच से बहुत दूर था
आपसे भी वही फासला हो गया

एक साया मेरे साथ था कम्बरी
यूं लगा जैसे मैं काफिला हो गया ।
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