गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

ग़ज़ल ;एहसास मगहरी ;मगहर ,[उ.प्र.]

हर एक को जहान में प्यारी है जिन्दगी
लेकिन अमल बगैर कुंवारी है जिन्दगी।

हो के दीवाना काट दी हमने तो जिन्दगी
कैसे कहूं अकेले हमारी है जिन्दगी।

ये है खुदा की चीज कि जब चाहे छीन ले
तेरी है जिन्दगी न ये मेरी है जिन्दगी।

जौरो-सितम के बाद भी दामन बचा लिया
हमने सदा वफा में गुजारी है जिन्दगी ।

यूं ही नहीं खिले हैं ये दिल में मेरे गुलाब
तप-तप के हमने गम में संवारी है जिन्दगी।

जिसके लिए ये फूल हो , हो फूल दोस्तों
एहसास के लिए तो कटारी है जिन्दगी।

ग़ज़ल ज्योति शेखर लखनऊ [उ.प्र.]

हमारे इस मरुस्थल को समंदर देने वाले थे
महल उनका कहाँ है जो हमें घर देने वाले थे।

धुंआ बारूद का पी-पी के अंधी हो गयीं आँखें
जिन्हें तुम अम्न का रंगीन मंजर देने वाले थे।

मरा फुटपाथ पर जो उसका इक वारिस नहीं निकला
सुना था आप फुटपाथों को बिस्तर देने वाले थे।

वो जिनके होठ चारण हैं कलम यशगान है साथी
हुकूमत के ये चातक क्रान्ति को स्वर देने वाले थे।

ये तुम हो जिनकी खातिर ये वतन बस एक कुर्सी है
वो हम थे जो वतन के वास्ते सर देने वाले थे।

वो सूरज थे जो ख़ुद डूबे सियासत के अंधेरे में
वो हर घर में खुशी की रौशनी भर देने वाले थे।
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