सदियों की रवायत है जो बेकार न कर दें
दीवाने ,कहीं मरने से, इनकार न कर दें
इल्जाम न आ जाए कोई मेरी अना पर
एहबाब मेरा रास्ता हमवार न कर दें
इस खौफ से उठने नहीं देता वो कोई सर
हम ख्वाहिशें अपनी कहीं मीनार न कर दें
मुश्किल से बचाई है ये एहसास की दुनिया
इस दौर के रिश्ते इसे बाज़ार न कर दें
यह सोच के नजरें वो मिलाता ही नहीं है
आँखें कहीं जज्बात का इज़हार न कर दें
गुरुवार, 7 मई 2009
गजल ; अंसार कम्बरी ,कानपुर
आप कहते हैं दूषित है वातावरण
पहले देखें स्वयं अपना अंतःकरण
कितना संदिग्ध है आपका आचरण
रात इसकी शरण , प्रात उसकी शरण
आप सोते हैं सत्ता की मदिरा पिये
चाहते हैं कि होता रहे जागरण
फूल भी हैं यहाँ , शूल भी हैं यहाँ
देखना है कहाँ पर धरोगे चरण
आप सूरज को मुट्ठी में दाबे हुये
कर रहे हैं उजालों का पंजीकरण
शब्द हमको मिले ,अर्थ वो ले गये
न इधर व्याकरण, न उधर व्याकरण
लीक पर हम भी चलते मगर कम्बरी
कौन है ऐसा जिसका करें अनुसरण
पहले देखें स्वयं अपना अंतःकरण
कितना संदिग्ध है आपका आचरण
रात इसकी शरण , प्रात उसकी शरण
आप सोते हैं सत्ता की मदिरा पिये
चाहते हैं कि होता रहे जागरण
फूल भी हैं यहाँ , शूल भी हैं यहाँ
देखना है कहाँ पर धरोगे चरण
आप सूरज को मुट्ठी में दाबे हुये
कर रहे हैं उजालों का पंजीकरण
शब्द हमको मिले ,अर्थ वो ले गये
न इधर व्याकरण, न उधर व्याकरण
लीक पर हम भी चलते मगर कम्बरी
कौन है ऐसा जिसका करें अनुसरण
गजल-- राजेन्द्र तिवारी, कानपुर
मंजिल पे पहुँचने का इरादा नहीं बदला
घबराए तो लेकिन कभी रस्ता नहीं बदला
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं यहाँ लोग
हमने तो कभी खेल में पाला नहीं बदला
है चाँद वही, चाँद की तासीर वही है
सूरज से जो मिलता है उजाला, नहीं बदला
कहते हैं अजी आप जमाने को बुरा क्यों
हम आप ही बदले हैं, जमाना नहीं बदला
खुदगर्जी में तब्दील हुए हैं सभी रिश्ते
है एक मुहब्बत का जो रिश्ता, नहीं बदला
बांहों में रहा चाँद हमारी ये सही है
किस्मत का मगर अपनी सितारा नहीं बदला
लफ्जों को बरतने का हुनर सीख रहा हूँ
लफ्फाजी नहीं की है तो लहजा नहीं बदला
कहते हैं मेरे चाहने वाले यही अक्सर
राजेन्द्र है वैसा ही, जरा सा नहीं बदला
घबराए तो लेकिन कभी रस्ता नहीं बदला
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं यहाँ लोग
हमने तो कभी खेल में पाला नहीं बदला
है चाँद वही, चाँद की तासीर वही है
सूरज से जो मिलता है उजाला, नहीं बदला
कहते हैं अजी आप जमाने को बुरा क्यों
हम आप ही बदले हैं, जमाना नहीं बदला
खुदगर्जी में तब्दील हुए हैं सभी रिश्ते
है एक मुहब्बत का जो रिश्ता, नहीं बदला
बांहों में रहा चाँद हमारी ये सही है
किस्मत का मगर अपनी सितारा नहीं बदला
लफ्जों को बरतने का हुनर सीख रहा हूँ
लफ्फाजी नहीं की है तो लहजा नहीं बदला
कहते हैं मेरे चाहने वाले यही अक्सर
राजेन्द्र है वैसा ही, जरा सा नहीं बदला
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