शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

ग़ज़ल -एहसास मगहरी ,मगहर [उ.प्र.]

जो बात तुममें  थी  वो  बात  कहाँ  है
 पहले की तरह रस्मे मुलाकात कहाँ है.
          मायूसियों ने लूट लिया प्यार का वजूद
          अब मेरे मुकद्दर में   तेरी जात  कहाँ है.
भूले   से   तेरी याद मुझे  आती नहीं  है
वो प्यार,वो उल्फत,वही ज़ज्बात कहाँ है.
          जब हुस्न ही है इश्क  के आदाब से खमोश
         उल्फत में बता इश्क की अब मात कहाँ है.
एहसास तो मोमिन है मगर मुझको बता आज
तूफ़ान       बदामा    वो   तेरी   जात   कहाँ  है.
कवित्त ; भाषा अवधी
अरविन्द कुमार झा ,लखनऊ [उ.प्र.]
चली बात हमरी तौ,हमहू ई बोलि उठे
बातन मां जितिहौ न ,तुम तौ हौ बउआ .
           हमते न उडौ,लदौ-भिदौ जाय अतै  अब 
           छोटे ते पेंच हम,    लडावा  कनकउआ .
मुर्गा,तीतर, बटेर ,खूब हम ,लडावा है,                
खावा रेवडी, आम झउवन पे  झउआ.
             अदब ,लिहाज़ हमरे बाप  की बपौती है
             हमते करौ दोस्ती, हम हन लखनउआ.  
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