शनिवार, 11 अप्रैल 2009

गीत ; संकटा पसाद श्रीवास्तवा 'बंधू श्री' करनैलगंज[उ.प्र.]

जाने क्यों हम खींच रहे हैं ,रोज लकीरें पानी पर
मुझको आती लाज आज है खुशबूदार जवानी पर।
रोज पालते घाव ह्रदय में,
और उन्हें सहलाते हैं
झूठ-सांच की मरहम पट्टी
से मन को बहलाते हैं
वंशज हैं राणा प्रताप के
और शिवाजी के शागिर्द

दाग लगाकर बैठ गये हम, वीरों की कुर्बानी पर
आती मुझको ----------------------------।
पीट-पीट कर ढोल सड़क पर
करते ता-ता-थैया रोज
डुबो रहे गांधी ,सुभाष औ
शेखर वाली नैया रोज
कभी अहिंसा,कभी शान्ति
तो कभी निपट भाई-चारा
सोच-सोच कर तंग आ चुके ,अपनी इस नादानी पर
आती मुझको------------------------------।
भले तिरंगा लहरायें हम
अम्बर की ऊंचाई तक
पटी न मुझसे छप्पन वर्षों
में कटुता की खाई तक
माना मेरी सैन्य -शक्ति से
सारा जग थर्राता है
फिर भी करते म्याऊँ -म्याऊँ चूहे की मनमानी पर
आती मुझको-------------------------------.

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