सोमवार, 23 मार्च 2009

गीत ; नवाब शाहाबादी , लखनऊ [उ.प्र.]

बगिया में अमवा भी महका पर
महुआ बदनाम हो गया !
चैता भी कम नहीं है मादक पर
फगुआ बदनाम हो गया !
खन-खन करते रहे रात भर
कंगन जोरा-जोरी में
छन-छन करती रही पयलिया
प्यार की कौरा -कौरी में
बिछुआ क्या ठुनका आंगन में
अखरा कानों में सबके
कंगना खनका, पायल छनकी पर
बिछुआ बदनाम हो गया !
पुरवाई ने आँखें नम की
पछुआ ने भी दर्द दिया
यादों को दोनों ने लाकर
मन घायल बेचैन किया
दोनों ने ही दर्द दिए हैं
क्या पछुआ क्या पुरवाई
पुरवाई सरनाम हो गयी पर
पछुआ बदनाम हो गया !
चले तो थे सब अगुवाई में
मंजिल भी थी एक मगर,
अपनी-अपनी मनमानी में
भटक गये सब इधर- उधर
मंजिल नहीं मिली जब इनको
दोष मढ़ दिया ध्वज वाहक पर,
दोषी तो थे चलने वाले पर
अगुआ बदनाम हो गया !
चैता भी कम नहीं है मादक,पर
फगुआ बदनाम हो गया !

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