रविवार, 22 मार्च 2009

कविता ; अलका मिश्रा ,गोरखपुर, [उ.प्र.]

इस
धूप की नई रंगत ने
मजबूर कर दिया है अब
सोचने पर
कि
फिजां बदलने लगी है
अब बदलना चाहिए हमें
अपना भी तौर-तरीका
खान-पान
रहन-सहन
आदतें
और
रवायतें भी
वक्त ;
आ गया है।

आज अपने भाई के जन्म दिन पर उसे प्यार के साथ
क्योंकि मैं उससे बहुत दूर हूँ.



1 टिप्पणी:

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

अजी़ब मज़बूरी... मगर धूप में नयी रंगत जो है..

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