मंगलवार, 10 मार्च 2009

ग़ज़ल- के के वैश्य "कृष्ण"

जो भी अक्सर प्रयास करता है
परीक्षा वह ही पास करता है।
जिसमें जुट जाने की तमन्ना होती,
वह ही जीने की आस करता है।
चिन्तन करने की जो लग्न रखते ,
व्यक्ति ऐसा ही खास करता है।
अभी गिरा है तो कल दौडेगा ,
दिल को कहे उदास करता है।
कुछ भी होता है नहीं असंभव यहाँ ,
श्रम में जो विश्वास करता है।
कर्म करने की प्यास जो रखे,
वह ही खाली गिलास करता है।

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