न वो जबान की शोखी मेरे बयान में है
न अब वो हुस्ने समाअत किसी के कान में है
बदल न दे वो कहीं रुख तेरे सफीने का
वो मुख्तसर सा जो सूराख बादबान में है
ये कहके वार दुबारा किया है कातिल ने
जरा सी जान अभी इस लहूलुहान में है
मेरी पसंद की गुडिया नजर नहीं आती
सुना हर एक खिलौना तेरी दुकान में है
न जाने कैसे वो दिन काटता है बारिश में
वो जिस गरीब का घर दोस्तों ढलान में है
रहे वफा पे मेरे सिर्फ़ नक्शे पा ही नहीं
मेरा लहू भी मेरे पांव के निशान में है
न जाने कौन सी आंधी बिखेर दे बेखुद
हर एक शख्स यहाँ रेत के मकान में है
शनि राहु युति के परिणाम
1 हफ़्ते पहले
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