शुक्रवार, 1 मई 2009

कविता ;इष्ट देव सांकृत्यायन ,
पूरब से
आती है
या
 आती है
पश्चिम से
एक किरण
सूरज की
दिखती है
इन आँखों में
 
मैं संकल्पित
जान्हवी से
कन्धों पर है
काँवर
आना चाहो
तो
आ जाना
तुम स्वयं 
विवर्त से बाहर 
 
तुमको ढूँढू
मंजरियों में 
तो
पाऊँ शाखों में
इन आँखों में 
 
सपने जैसा 
शील तुम्हारा 
और ख्यालों सा 
रूप
पानी जीने वाली 
मछली ही
पी  पाती है
धूप
 
तुम तो 
बस तुम ही हो
किंचित उपमेय नहीं
कैसे गिन लूँ
तुमको
मैं लाखों में 
इन आँखों में.   

1 टिप्पणी:

Prem Farukhabadi ने कहा…

Rachna ke bhav achchhe hain.

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