मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

ग़ज़ल-- अरविन्द कुमार सोनकर "असर'

वो आँखों ही आँखों में मुझे तोल रहा है
लब उसके हैं खामोश मगर बोल रहा है .

मैं जानता हूँ हिर्सो-हवस हैं बुरे फिर भी 
मैं देख रहा हूँ मेरा मन डोल रहा है .

अब देखो वो भी मुल्क पढ़ाता है हमें पाठ 
जिसका न कुछ इतिहास न भूगोल रहा है 

मुद्दत हुई है फिर भी तेरे प्यार का वो बोल 
कानों में मेरे आज भी रस घोल रहा है 

ईमान का तो मोल ही अब कुछ भी नहीं है 
वैसे ये कभी मुल्क में अनमोल रहा है 

शायद वो किसी और ही ग्रह का है निवासी  
जो सबसे बड़े प्यार से हंस-बोल रहा है

गैरों के असर राजे-निहाँ मुझको बताकर
वो अपना ही खुद राजे-निहाँ खोल रहा है

सम्पर्क....२६८/४६/६६ डी, खजुहा, तकिया चाँद अली शाह, लखनऊ-२२६००४. 
दूरभाष-- ०५२२-२२४१५८४  मोबाइल-- 09415928198

17 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

ये शेर वाकई प्‍यारा लगा..
मुद्दत हुई है फिर भी तेरे प्यार का वो बोल
कानों में मेरे आज भी रस घोल रहा है

रंजना ने कहा…

Lajawaab !!!

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर ..शुक्रिया इसको पढवाने के लिए

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया गजल है।बधाई।

राज भाटिय़ा ने कहा…

सभी शेर बहुत सुंदर लगे.
धन्यवाद

मनोज कुमार ने कहा…

ईमान का तो मोल ही अब कुछ भी नहीं है
वैसे ये कभी मुल्क में अनमोल रहा है
एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल पेश करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

ईमान का तो मोल ही अब कुछ भी नहीं है
वैसे ये कभी मुल्क में अनमोल रहा है
सबसे ज्यादा कीमती,
आपके लफ्ज़ों में कहें 'अनमोल' शेर
आने वाले साल की शुभकामनाओं के साथ
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

असर जी का पहले से ही फैन हूँ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्‍कार घोषित।

हिमांशु{''हरीश ''} बिष्ट दिल्ली (उत्तराखंड) ने कहा…

Alka G pardaam bahut hi acha likha hua hai apne..ye laene..bahut hi pyare hai dil ko bhane wali hai ye....kya kaho may lekhte jaiye aap hamare yahi shubhkamnaye hai aapke sath......

श्रद्धा जैन ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हिमांशु{''हरीश ''} बिष्ट दिल्ली (उत्तराखंड) ने कहा…

Bahut acha lekhte ho aap lekhte jaeye..

kuch hat ke....

श्रद्धा जैन ने कहा…

Arvind ji itni shaandaar gazal padhwaane ke liye tahe dil se shukrguzaar hun

daanish ने कहा…

बहुत ही अच्छी ,,,पुर-असर ग़ज़ल
कही है आपने
हर शेर मुकम्मिल-सा ही महसूस होता है
"शायद वो किसी और ही गृह का है निवासी
जो सब से बड़े प्यार से हंस-बोल रहा है.."
ये शेर तो बहुत उम्दा कहा आपने
मुबारकबाद .

बेनामी ने कहा…

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