शनिवार, 27 मार्च 2010

गजल -मंजरूल हक 'मंजर'लखनवी

वक्त की धूप में झुलसे हैं बहुत
उतरे उतरे से जो चेहरे हैं बहुत

खौफ ने पाँव पसारे हैं बहुत
सहमे सहमे हुए बच्चे हैं बहुत

इतनी मस्मूम है गुलशन की फजा
सांस लेने में भी खतरे हैं बहुत

बेशकीमती हैं ये किरदार के फूल
जिन्दगी भर जो महकते हैं बहुत

लुत्फ़ जीने में नहीं है कोई
लोग जीने को तो जीते हैं बहुत

मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत

जो बुजुर्गों ने किये हैं रोशन
उन चरागों में उजाले हैं बहुत

सब्र के घूँट बहुत तल्ख़ सही
फल मगर सब्र के मीठे हैं बहुत

सीख लो फूलों से जीना मंजर
रह के काँटों में भी हँसते हैं बहुत

10 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

लुत्फ़ जीने में नहीं है कोई
लोग जीने को तो जीते हैं बहुत
बेहतरीन। लाजवाब।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर गजल जी
धन्यवाद

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत
और-
बेशकीमती हैं ये किरदार के फूल
जिन्दगी भर जो महकते हैं बहुत
खास पसंद आये

रविकांत पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर गज़ल है। आभार।

Apanatva ने कहा…

acchee gazal.
aabhar

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

खौफ ने पाँव पसारे हैं बहुत
सहमे सहमे हुए बच्चे हैं बहुत

इतनी मस्मूम है गुलशन की फजा
सांस लेने में भी खतरे हैं बहुत
मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत

ख़ूब्सूरत शाएरी का मज़ाहेरा

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मंज़र जी की लाजवाब ग़ज़ल .. है शेर हकीकत से जुड़ा लगता है ....

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और शानदार ग़ज़ल! इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने..

_______
"पाखी की दुनिया" में इस बार "अंडमान में रिमझिम-रिमझिम बारिश"

Narendra Vyas ने कहा…

मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत

जो बुजुर्गों ने किये हैं रोशन
उन चरागों में उजाले हैं बहुत..
ये शेर बहुत ही अच्‍छे लगे|
पढके आपकी ये गजल फकत इतना कहूंगा

बहुत खूब। बहुत खूब। बहुत खूब।।

बहुत सुन्‍दर अशआर के लिये शुक्रिया और बधाई।।

आभार।।

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