वक्त की धूप में झुलसे हैं बहुत
उतरे उतरे से जो चेहरे हैं बहुत
खौफ ने पाँव पसारे हैं बहुत
सहमे सहमे हुए बच्चे हैं बहुत
इतनी मस्मूम है गुलशन की फजा
सांस लेने में भी खतरे हैं बहुत
बेशकीमती हैं ये किरदार के फूल
जिन्दगी भर जो महकते हैं बहुत
लुत्फ़ जीने में नहीं है कोई
लोग जीने को तो जीते हैं बहुत
मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत
जो बुजुर्गों ने किये हैं रोशन
उन चरागों में उजाले हैं बहुत
सब्र के घूँट बहुत तल्ख़ सही
फल मगर सब्र के मीठे हैं बहुत
सीख लो फूलों से जीना मंजर
रह के काँटों में भी हँसते हैं बहुत
शनि राहु युति के परिणाम
2 दिन पहले
10 टिप्पणियां:
लुत्फ़ जीने में नहीं है कोई
लोग जीने को तो जीते हैं बहुत
बेहतरीन। लाजवाब।
बहुत सुंदर गजल जी
धन्यवाद
मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत
और-
बेशकीमती हैं ये किरदार के फूल
जिन्दगी भर जो महकते हैं बहुत
खास पसंद आये
बहुत सुंदर गज़ल है। आभार।
acchee gazal.
aabhar
खौफ ने पाँव पसारे हैं बहुत
सहमे सहमे हुए बच्चे हैं बहुत
इतनी मस्मूम है गुलशन की फजा
सांस लेने में भी खतरे हैं बहुत
मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत
ख़ूब्सूरत शाएरी का मज़ाहेरा
मंज़र जी की लाजवाब ग़ज़ल .. है शेर हकीकत से जुड़ा लगता है ....
बहुत ही सुन्दर और शानदार ग़ज़ल! इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई!
बहुत सुन्दर लिखा आपने..
_______
"पाखी की दुनिया" में इस बार "अंडमान में रिमझिम-रिमझिम बारिश"
मुत्तहिद हो गये पत्थर सारे
और आईने अकेले हैं बहुत
जो बुजुर्गों ने किये हैं रोशन
उन चरागों में उजाले हैं बहुत..
ये शेर बहुत ही अच्छे लगे|
पढके आपकी ये गजल फकत इतना कहूंगा
बहुत खूब। बहुत खूब। बहुत खूब।।
बहुत सुन्दर अशआर के लिये शुक्रिया और बधाई।।
आभार।।
एक टिप्पणी भेजें