गुलामी सब अभी तक ढो रहे हैं
और इस पर भी सभी खुश हो रहे हैं
घरों तक पैठ है दुश्मन की लेकिन
हमारे शहर में सब सो रहे हैं
बुलंदी, रौशनी, सम्मान, दौलत
ये सारे फायदे किस को रहे हैं
कटाई का समय सर पर खड़ा है
किसान अब खेत में क्या बो रहे हैं
दरिन्दे भी, किसी पल आदमी भी
यहाँ चेहरे सभी के दो रहे हैं
सुना है आप हैं बेदाग़ अब तक
तो दामन फिर भला क्यों धो रहे हैं
अभी तक रो रहे थे बंदिशों पर
अब आज़ादी का रोना रो रहे हैं
हमें छालों का दुखडा मत सुनाओ
सफर में साथ हम भी तो रहे हैं
अंधेरों ने किया दुनिया पे कब्जा
उजाले अपनी ताक़त खो रहे है
शनि राहु युति के परिणाम
1 हफ़्ते पहले
2 टिप्पणियां:
आख़री के तीनो शेर बहुत अच्छे लगे
वीनस केसरी
बहुत ही सुन्दर रचना!
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
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