बुधवार, 11 मार्च 2009

गीत ;सर्वत जमाल

कोई मन को भा जाए चुन लेती हैं

आंखों का क्या है सपने बुन लेती हैं
लेकिन सपने केवल सपने होते हैं।
खाली कमरा चीजों से भर सकता है
कोई कितना दुःख हल्का कर सकता है
हमने बाहर भीतर से घर आंगन में
घायल होकर भी देखा है जीवन में
सारे दर्द अकेले सहने होते हैं
लेकिन सपने -------------।

पीडाओं की हद किस-किस को दिखलायें
आख़िर अपना कद किस-किस को दिखलायें
पौधा वृक्ष बनेगा ये आशा भी है
सबको फल पाने की अभिलाषा भी है
उनकी बात करो जो बौने होते हैं
लेकिन सपने --------------------------

क्या होता है बारहमासा क्या जाने
गर्मी जाड़ा धूप कुहासा क्या जाने
saari चिंता अख़बारों की खबरों पर
बैठे रहे किनारे कब थे लहरों पर
जिनके नाखून चिकने-चिकने होतe hain
लेकिन सपने --------------------------।





1 टिप्पणी:

ठाकुर पदम सिंह ने कहा…

क्या होता है बारहमासा क्या जाने
गर्मी जाड़ा धूप कुहासा क्या जाने
saari चिंता अख़बारों की खबरों पर
बैठे रहे किनारे कब थे लहरों पर
जिनके नाखून चिकने-चिकने होतe hain
लेकिन सपने --------------------------।
......बहुत सुंदर गीत है ..... हमेशा की तरह
ज़माल साहब मै आपसे दिल्ली ब्लोगर मीट में मिला था ... आपसे गुज़ारिश है कि आप अपना ईमेल आईडी देने का कष्ट करें मुझे आपसे कुछ खास गुफ्तगू करनी है ... क्या उम्मीद करूँ??
मेरा आई डी है-ppsingh8@gmail.com

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