नजर से दिल में आ कर काटता है
हसीं चेहरे का मंजर काटता है
सुना है जब से उसका हाले-गुरबत
कोई अंदर ही अंदर काटता है
न जाने और कितने लख्त होंगे
कोई बाजू कोई सर काटता है
शहर से लौट तो आया वो लेकिन
उसे गाँव का मंजर काटता है
ये इन्सां है कि है खंजर से बदतर
बड़ी फितरत से मिल कर काटता है
रहे क्या वो चमन में फूल बन कर
यहाँ पत्थर को पत्थर काटता है
भला तुम को कहूं मैं कैसे अपना
मुझे मेरा मुकद्दर काटता है
ये घर की अर्श वीरानी न पूछो
भरा घर है मगर घर काटता है.
शनि राहु युति के परिणाम
2 दिन पहले
13 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी ग़ज़ल है. कहन का कोई जवाब नहीं.
भाई वहा क्या बता है। लाजवाब रचना
बहुत अच्छी रचना है, जय श्री कृष्ण!
ये घर की अर्श वीरानी न पूछो
भरा घर है मगर घर काटता है
बहुत खूब. शुक्रिया.
अच्छी गजल के लिए अभिवादन स्वीकार करे।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
आभार
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
"सुना है जब से उसका हाले-गुरबत
कोई अंदर ही अंदर काटता है
शहर से लौट तो आया वो लेकिन
उसे गाँव का मंजर काटता है
ये इन्सां है कि है खंजर से बदतर
बड़ी फितरत से मिल कर काटता है "
बहुत उम्दा शेर...बहुत अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में.जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
अलका मैडम
सलाह देने के लिए बहुत -बहुत शुक्रिया। मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ के अवसर पर मैने सबको आमंत्रित किया यह ठीक है । घर में कोई उत्सव ,समारोह के लिए हम एक ही भाषा के कई कार्ड छपवाते हैं ,समझ लीजिए यह भी मेरे बच्चे का जन्मदिन था । खाली कमेन्ट लेने में मैं क्षणिक सुख समझती हूं , सरस्वती का भक्त पढकर ही प्रासद पाता है । खैर ! यदि आप मेरे विचारों से सहमत न हों तो कोई बात नहीं । आज़ादी के अवसर की बात रही वैसे हमें भी भावाव्यक्त्ति की आज़ादी है ।
अलका जी
हमसफर का ये असर क्या बात है वल्लाह
कोई किसी से कम नहीं क्या जोड़ है लिल्लाह
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाये
BADHAI
मजहब नहीं सिखाते दंगा फसाद जुल्मत
हर पाप की वजह है ईमान की शहादत
न मन्दिर ने दिया खंजर न मसजिद ने कोई फतवा
मतलब के लिए अपने बोते हैं लोग नफरत
ईमान को तो लगता है मजहब का आसरा पर
बेईमानों के एकता के पीछे है फ़कत दौलत
आये नहीं अरसे से हमारे गरीब खाने
इस ब्लॉग को भी रहती है नजरे करम की चाहत
Bahut Sundar Gazal.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
..एक link देती हूँ :
http://shama-kahanee.blogspot.com
यहाँ पे ' गज़ब कानून ' तथा, उसपे आधारित एक कथा है : "कब होगा अंत?"
http://lalitlekh.blogspot.com
इस blog पे Dr Dharamveer National Police commission ने सुझाये हुए reforms हैं ...जिनकी अवहेलना , सन ,1981 से हो रही है ..!उच्चतम न्यायलय के निर्देश के बावजूद !
पुलिस की संख्या केवल कम नही, उनके अधिकार भी बेहद मर्यादित हैं...और उनका लिया गया हरेक action एक आईएस अफसर के आर्डर से होता है..लेकिन भुगतान पुलिस कर्मी को करना पड़ता है..action ले तो ग़लत...उसपे enquiery..ना ले तो ग़लत...के दर्शक बने रहे! या suspend करो,और तफ्तीश शुरू करो..सबसे पहले तबादला कर दो...!
एक war footing पे जनजागृती की ज़रूरत है...वरना अगला आतंकी हमला दूर नही..और कबतक उसकी चपेट से हम बचे रहेंगे? या जब तक हमपे नही गुज़रती, 'पर दुक्ख शीतल' मानके ज़िंदगी बसर करेंगे?
अलका जी ,आपका तहे दिलसे शुक्रिया ..!
क्यों ना आप भी शामिल हो ,अन्य blogger मित्रों से इस बारेमे संपर्क करें ! मुझे बेहद खुशी होगी ...I will be proud of you!
September 4, 2009 4:23 PM
"arsh" kee gazal hamesha ki tarah behtareen hai!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://baagwaanee.blogspot.com
"सुना है जब से उसका हाले-गुरबत'
कोई अंदर ही अंदर काटता है|
ये इन्सां है कि है खंजर से बदतर'
बड़ी फितरत से मिल कर काटता है|"
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...
gazab ke sher
aakhir ye pasand kisee hai
aapkee pasand ka istekbal
sarvat sahab ke aadesh ka palan hmne kar diya hai ,ab sannaten kee saugandhon ko tod ne ke liye kahiyega .
aapkee sifarish laga raha hoon
भला तुम को कहूं मैं कैसे अपना
मुझे मेरा मुकद्दर काटता है
mere man ki baat... mere dil ki baat... kaha di hai aapne...
mai to kaha doon bat saari,
agar aap ho saamane.....
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