मंगलवार, 29 सितंबर 2009

ग़ज़ल ; सत्यप्रकाश शर्मा

बयान देता है ख़ुद आसमान ,अच्छी है
नज़र न लगे परिंदे ! उड़ान अच्छी है

न खुशकलाम अगर हो सको तो कम से कम
ख़मोश ही रहो ,दिल की ज़बान अच्छी है

चमकते लफ्ज़ निकाले हैं इन अंधेरों से
हमारे वास्ते दिल की खदान अच्छी है

ये जिन्दगी है ,यहाँ गम के खूब जंगल हैं
कहीं मिले तो खुशी की मचान अच्छी है

तुम्हारा दिल है ,तुम अपने ख़याल ख़ुद जानो
हमारे मुंह में हमारी ज़बान अच्छी है

खुशी का चेहरा उतरता है वक्त के आगे
मगर जो घटती नहीं ,गम की शान अच्छी है

ये जानता हूँ मुसीबत है प्यार में फ़िर भी
रहे बला से ,मुसीबत में जान अच्छी है

'प्रकाश' शेर कहो इस तरह कि लोग कहें
तुम्हारा दिल भी है अच्छा ,जबान अच्छी है ।
२५४ ,नवशील धाम
कल्यानपुर ,बिठूर मार्ग
कानपुर
9450936917

4 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

लाजवाब गज़ल है एक एक शेर दिल तक उतरता है शर्मा जी को बहुत बहुत बधाई

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

तुम्हारा दिल है ,तुम अपने ख़याल ख़ुद जानो
हमारे मुंह में हमारी ज़बान अच्छी है

क्या खूब कहा है, बेहद पसंद आया.

सत्यप्रकाश शर्मा जी की ग़ज़ल से रूबरू करवाने का हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ये जानता हूँ मुसीबत है प्यार में फ़िर भी
रहे बला से ,मुसीबत में जान अच्छी है

wah! bahut khoob.....

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wah..
Behtar Prastuti...

दीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
आज का प्रश्न यही है
बही कह रही सही है

पर इस सबके बावजूद

थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
---------शुभकामनाऒं सहित
---------मौदगिल परिवार

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