सोमवार, 30 नवंबर 2009

गजल ;सत्यप्रकाश शर्मा ,

आज जी भर के खिलखिलाए हैं
मुद्दतों बाद , लफ्ज़ आए हैं

लफ्ज़ टपके हैं उसकी आंखों से
उसने आंसू नहीं गिराए हैं

मिल गयी हैं वुजूद को आँखें
लफ्ज़ जब से नज़र आए हैं

हम तो खामोशियों के पर्वत से
लफ्ज़ कुछ ही तराश पाये हैं

लफ्ज़ बाक़ी रहेंगे महशर तक
इनके सर पर खुदा के साए हैं

ये सुखन और ये मआनी सब
लफ्ज़ की पालकी उठाए हैं

लफ्ज़ तनहाइयों में बजते हैं
जैसे घुंघरू पहन के आए हैं

लफ्ज़ की रोशनी में हम तुमसे
जान पहचान करने आए हैं

कानपुर
9450936917

8 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

लफ्ज़ टपके हैं उसकी आंखों से
उसने आंसू नहीं गिराए हैं
उम्दा गज़ल, सुन्दर भाव

निर्मला कपिला ने कहा…

लफ्ज़ टपके हैं उसकी आंखों से
उसने आंसू नहीं गिराए हैं
वाह बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई

रंजू भाटिया ने कहा…

अरे वाह आपका यह ब्लॉग तो आज ही देखा बहुत बढ़िया गजले हैं इस में शुक्रिया इनको पढवाने के लिए

शोभित जैन ने कहा…

लफ्ज़ टपके हैं उसकी आंखों से
उसने आंसू नहीं गिराए हैं...

Behtareen har sher lajbaab

Rector Kathuria ने कहा…

हम तो खामोशियों के पर्वत से
लफ्ज़ कुछ ही तराश पाये हैं.

अरे अलका जी! आप बहुत अच्छा लिखती है बस लगे रहिये...यह धुन एक दिन रंग लाएगी.....

vikram260 ने कहा…

mugh ko esa lagta he kee aap JINNA ke bary me
jada janti he .
plz improve ur G.K. about JINNA
so read this book
Freedom at midnight
Authors Larry Collins, Dominique Lapierre

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप की कविता बहुत अच्छी लगी,धन्यवाद

Arshia Ali ने कहा…

सरल भाषा में मन के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति।
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

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