गज़ल की दुनिया के लोग के.के.सिंह 'मयंक' से खूब वाकिफ हैं. देश ही नहीं, सात समन्दर पार तक मयंक जी की गजलें धूम मचा रही हैं. गज़ल के अलावा गीत, रुबाई, क़तआत, हम्द, नात, मनकबत, सलाम, भजन, दोहे पर भी आपकी अच्छी पकड़ है. अभी मयंक जी का एक नया रूप देखने को मिला. उन्होंने हास्य-व्यंग्य पर हाथ लगाया और कुछ रचनाएँ जन्म ले गईं. एक साहित्य हिन्दुस्तानी के हत्थे चढ़ गई जो यहाँ पेश है:
हुआ मंहगाई में गुम पाउडर, लाली नहीं मिलती
तभी तो मुझसे हंसकर मेरी घरवाली नहीं मिलती
ये बीवी की ही साजिश है कि जब ससुराल जाता हूँ
गले साला तो मिलता है मगर साली नहीं मिलती
मटन, मुर्गा, कलेजी, कोरमा अब भूल ही जाएँ
कि सौ रूपये में 'वेजीटेरियन थाली' नहीं मिलती
सभी पत्नी से घर के खाने की तारीफ़ करते हैं
कोई भी मेज़ होटल में मगर खाली नहीं मिलती
अगर पीना है सस्ती, फ़ौज में हो जाइए भर्ती
वगरना दस रूपये में बाटली खाली नहीं मिलती
प्रदूषण से तुम अपने हुस्न को कैसे बचाओगे
यहाँ तो दूर तक पेड़ों की हरियाली नहीं मिलती
म्युनिस्पिलटी ने हम रिन्दों पे कैसा ज़ुल्म ढाया है
कि गिरने के लिए 'ओपन' कोई नाली नहीं मिलती
हुआ है जबसे भ्रष्टाचार, शिष्टाचार में शामिल
हमारे राजनेताओं में कंगाली नहीं मिलती
'मयंक' स्टेज पर गीतों-गज़ल अब कौन सुनता है
न हों रचनाओं में गर चुटकुले, ताली नहीं मिलती
शनि राहु युति के परिणाम
2 दिन पहले
15 टिप्पणियां:
प्रदूषण से तुम अपने हुस्न को कैसे बचाओगे
यहाँ तो दूर तक पेड़ों की हरियाली नहीं मिलती ....
वाह क्या बात कही है....'मंयक' जी ने...
अलका जी आप का धन्यवाद जो आप ने ऐसी सुंदर रचना पढ़ने के लिए उपलब्ध करवाई ।
आप का शुक्रिया करना चाहती हूँ जो आप 'शब्दों का उजाला' बलॉग पर आईं ।
कभी समय निकाल कर 'हिन्दी हाइकु' बलॉग पर आना...
लिंक है....
http://hindihaiku.blogspot.com
hindihaiku@gmail.com
हरदीप
ये बीवी की ही साजिश है कि जब ससुराल जाता हूँ
गले साला तो मिलता है मगर साली नहीं मिलती
यह बात तो बिलकुल सही है:)
'मयंक' स्टेज पर गीतों-गज़ल अब कौन सुनता है
न हों रचनाओं में गर चुटकुले, ताली नहीं मिलती
ये बीवी की ही साजिश है कि जब ससुराल जाता हूँ
गले साला तो मिलता है मगर साली नहीं मिलती
हुआ है जबसे भ्रष्टाचार, शिष्टाचार में शामिल
हमारे राजनेताओं में कंगाली नहीं मिलती
वाह समझ नही आ रहा कि कितनी तालियाँ बजाऊँ-- शायद हाथों मे इतनी ताकत ही नही होगी। बधाई मंयंक जी को।
आदरणीय के.के.सिंह 'मयंक' जैसे बेहतरीन अदीब फ़नकार की रचना पढ़वाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूं ।
बड़ी मेहरबानी , आप उन तक मेरा सलाम पहुंचाएं ।
मुझे दो बार मयंक साहब से मुलाक़ात और कलाम सुनने - सुनाने का भी सौभाग्य मिला है ।
साहित्य हिन्दुस्तानी के हाथ लगी उनकी बह्रे हज़ज पर आधारित यह ज़ौक़आफ़्रीं ग़ज़ल सचमुच उनका अलग ही रूप दिखा रही है । …और इसके लिए आप मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं ।
पूरी ग़ज़ल शानदार है यह कहना भी सूरज को दीया दिखाने जैसी बात है ।
…लेकिन मक़्ते के शे'र में व्याकरण की एक त्रुटि / चूक ध्यान में आई …
आप फ़रमाते हैं…
'मयंक' स्टेज पर गीतों-गज़ल अब कौन सुनता है
'गीतों - ग़ज़ल कौन सुनता है ' कहने से वाक्य - विन्यास त्रुटिपूर्ण रह जाता है ।
ख़ाकसार ने कोशिश की है , देखें …
मयंक अब कौन सुनता है, ग़ज़ल - गीतों को मंचों पर
या फिर ऐसे कहें तो …
मयंक स्टेज पर अब गीत - ग़ज़लें कौन सुनता है
पुनः आपका शुक्रिया …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बेहतरीन !
बहुत खूब.
जहां यह शेर दोस्तों को सुना कर वाहवाही लूंटे के लिए उपयोगी है ...
ये बीवी की ही साजिश है कि जब ससुराल जाता हूँ
गले साला तो मिलता है मगर साली नहीं मिलती
वहीं यह शेर महिलाओं को प्रदुषण से लड़ने के लिए प्रेरित करता है....
प्रदूषण से तुम अपने हुस्न को कैसे बचाओगे
यहाँ तो दूर तक पेड़ों की हरियाली नहीं मिलती
..यह तो तय है की महिलाएं ठान लें तो दस गुना वृक्ष एक साल में लग जाय.
ये बीवी की ही साजिश है कि जब ससुराल जाता हूँ
गले साला तो मिलता है मगर साली नहीं मिलती
kya baat hai mayank da baht khoob
बिलकुल सही
मजेदार ।
bahut badiya...
mayank saahb aadaab men aapko kota ki khaas yaadon men laa rhaa hun bhaai kotaa men bhi aap kaafi rhe hen men jnnaayk kota ka upsmpaadk akhtar khan akelaa hun lekin ab aap to aese bichde ki aaj intrnet pr chrchaa ke nam pr mile ab duaa he khuda se inshaa allah milte rhenge mera hindi blog akhtarkhanakela.blogspot he kbhi furst ho to zrut dekhiye intizaar he . akhtar khan akela kota rajthan
मयंक जी की खूबसूरत और अच्छी vyang रचना है ये ....
कमाल की रचना है, व्यंग्य के माध्यम से पर्यावरण और प्रदुषण से ले कर और भी कई मुद्दों को उठाया गया है!
@मयंक भाई
इसे ग़ज़ल या हुजल कहना तो गुनाह होगा,
ये तो ठहाकों का एटम बम है।
@अलका जी
इतना दमदार ब्लॉग, और हमें खबर ही नहीं। भला हो सर्वत साहब का जो सरे राह चलते चलते यह लिंक भेज दिया।
बहुत अच्छी ग़ज़लें हैं।
bahut hee shandaar rachana hai .
हुआ है जबसे भ्रष्टाचार, शिष्टाचार में शामिल
हमारे राजनेताओं में कंगाली नहीं मिलती
'मयंक' स्टेज पर गीतों-गज़ल अब कौन सुनता है
न हों रचनाओं में गर चुटकुले, ताली नहीं मिलती
kya baat hai..........
vaise kai mudde uthae gaye hai....
sunder abhivykti .
aabhar
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