जहां भी देखो, जिधर भी देखो
वहीं हैं दैरो-हरम के झगड़े.
जिसे भी देखो वो अपने मज़हब को सबसे ऊंचा बता रहा है
वो दूसरों के गुनाह हमको गिना रहा है, सुना रहा है.
उसे ख़बर ही नहीं है शायद
हर एक मज़हब के रास्ते की है एक मन्ज़िल
वो सबका मालिक जो एक है पर
न जाने उसके हैं नाम कितने,
सब उसकी महिमा को जानते हैं
मगर न मानेंगे इसकी कसमें उठाए फिरते हैं जाने कब से.
वही है दैरो-हरम का मालिक
तो मिल्कियत का वही मुहाफ़िज़ हुआ यक़ीनन
मगर ये ऐसा खुला हुआ सच
कोई न समझे तो क्या करें हम?
पढ़े-लिखे और कढ़े हुए सब
इस एक नुकते पे अपनी आँखों को बंद करके उलझ रहे हैं.
ख़ुदा, ख़ुदा है, वो सब पे क़ादिर है जब तो फिर क्यों
तमाम खल्के-ख़ुदा को शक है.
वो चाह ले तो तमाम दुनिया को एक पल में मिटा के रख दे
मगर वो मखलूक के दिलों में
मुहब्बतों के चराग़ रोशन किए हुए है.
हवस-परस्ती में रास्ते से भटक गए हैं जो चंद इन्सां
वही तो अपनी शिकस्त ख़ुर्दा अना की ज़िद में
अड़े हुए हैं.
वो नफ़रतों की तमाम फ़सलों को खून देने में मुन्हमिक हैं
उन्हें पता भी नहीं कि उनका ये कारे-बेजा
हमारी नस्लों को उनके वरसे में जंग देगा
तमाम इंसानियत की चीख़ें सुनेंगे हम-तुम
ज़मीं पे क़ह्तुर्रिज़ाल होगा.
सो, ऐसा मंजर कभी न आए
ख़ुदा-ए-बरतर
दुआ है तुझ से
हवस-परस्तों के तंग दिल को वसीअ कर दे
कुदूरतों को मिटा के उन में भी नूर भर दे
मुहब्बतों का सुरूर भर दे, मुहब्बतों का सुरूर भर दे!
संजय मिश्रा 'शौक़', लखनऊ .
वो दूसरों के गुनाह हमको गिना रहा है, सुना रहा है.
उसे ख़बर ही नहीं है शायद
हर एक मज़हब के रास्ते की है एक मन्ज़िल
वो सबका मालिक जो एक है पर
न जाने उसके हैं नाम कितने,
सब उसकी महिमा को जानते हैं
मगर न मानेंगे इसकी कसमें उठाए फिरते हैं जाने कब से.
वही है दैरो-हरम का मालिक
तो मिल्कियत का वही मुहाफ़िज़ हुआ यक़ीनन
मगर ये ऐसा खुला हुआ सच
कोई न समझे तो क्या करें हम?
पढ़े-लिखे और कढ़े हुए सब
इस एक नुकते पे अपनी आँखों को बंद करके उलझ रहे हैं.
ख़ुदा, ख़ुदा है, वो सब पे क़ादिर है जब तो फिर क्यों
तमाम खल्के-ख़ुदा को शक है.
वो चाह ले तो तमाम दुनिया को एक पल में मिटा के रख दे
मगर वो मखलूक के दिलों में
मुहब्बतों के चराग़ रोशन किए हुए है.
हवस-परस्ती में रास्ते से भटक गए हैं जो चंद इन्सां
वही तो अपनी शिकस्त ख़ुर्दा अना की ज़िद में
अड़े हुए हैं.
वो नफ़रतों की तमाम फ़सलों को खून देने में मुन्हमिक हैं
उन्हें पता भी नहीं कि उनका ये कारे-बेजा
हमारी नस्लों को उनके वरसे में जंग देगा
तमाम इंसानियत की चीख़ें सुनेंगे हम-तुम
ज़मीं पे क़ह्तुर्रिज़ाल होगा.
सो, ऐसा मंजर कभी न आए
ख़ुदा-ए-बरतर
दुआ है तुझ से
हवस-परस्तों के तंग दिल को वसीअ कर दे
कुदूरतों को मिटा के उन में भी नूर भर दे
मुहब्बतों का सुरूर भर दे, मुहब्बतों का सुरूर भर दे!
संजय मिश्रा 'शौक़', लखनऊ .
19 टिप्पणियां:
हवस-परस्ती में रास्ते से भटक गए हैं जो चंद इन्सां
वही तो अपनी शिकस्त ख़ुर्दा अना की ज़िद में
अड़े हुए हैं.
वो नफ़रतों की तमाम फ़सलों को खून देने में मुन्हमिक हैं
उन्हें पता भी नहीं कि उनका ये कारे-बेजा
हमारी नस्लों को उनके वरसे में जंग देगा
तमाम इंसानियत की चीख़ें सुनेंगे हम-तुम
ज़मीं पे क़ह्तुर्रिज़ाल होगा.
बेहतरीन नज़्म !
कम से कम मैं ने इस टॉपिक पर इस बेहतर नज़्म नहीं पढ़ी
कमाल है संजय जी
एक मुरस्सा नज़्म जो किसी को भी हालात का और इन हालात से पैदा होने वाली मुश्किलों की
तस्वीर पेश करती है
मेरे पास तौसीफ़ी अल्फ़ाज़ की कमी हो गई है आज
बहुत ख़ूब!
दुआ है तुझ से
हवस-परस्तों के तंग दिल को वसीअ कर दे
कुदूरतों को मिटा के उन में भी नूर भर दे
मुहब्बतों का सुरूर भर दे, मुहब्बतों का सुरूर भर दे!
Ameen
बहुत अच्छी रचना, धन्यवाद
बहुत ख़ूब रचना
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
दुआ है तुझ से
हवस-परस्तों के तंग दिल को वसीअ कर दे
कुदूरतों को मिटा के उन में भी नूर भर दे
मुहब्बतों का सुरूर भर दे, मुहब्बतों का सुरूर भर दे!
हम भी यही दुआ करते हैं बहुत अच्छी रचना । शुभकामनायें
apane jazvato ka umda izhaar kiya aapne.....
shukriya......
बहुत खूब
बहुत बढ़िया रचना के लिए आपको धन्यवाद। हम सभी सच से परिचित हैं फिर भी कुछ निजी स्वार्थों के लिए हम "उसे" भूल जाते हैं और जब ठोकर लगती है तो "उसे" दोष देने लग जाते हैं।
bahot sunder.
Khoobsoorat nazm ..!!
ख़ुदा, ख़ुदा है, वो सब पे क़ादिर है जब तो फिर क्यों
तमाम खल्के-ख़ुदा को शक है..
:)
बहुत खूब
अलका जी आप को बहुत ही बधाई है, जो आप इतनी मेहनत से इन ग़ज़लों ,कविताओं को संग्र्हहित करती हैं और साहित्य हिन्दुस्तानी में ला कर डालती हैं,अब तो आपको अपने ब्लाग के बारे में बहुत कुछ पता चल गया होगा कि आपका ब्लाग कैसा है !
आप गोरखपुर का ही नहीं अपने सारे देश का नाम व मान इंटरनेट पर हिंदी में इन ग़ज़लों ,कविताओं को ड़ाल कर बढ़ा रही हैं आप जो हिंदी कि सेवा कर रही हैं,उसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !!!
आप स्वयं भी कवितायेँ अच्छी लिखती हैं !
बहुत खूब...
उन्हें पता भी नहीं कि उनका ये कारे-बेजा
हमारी नस्लों को उनके वरसे में जंग देगा
तमाम इंसानियत की चीख़ें सुनेंगे हम-तुम
ज़मीं पे क़ह्तुर्रिज़ाल होगा.
इससे अधिक और चेतावनी क्या दे कोई । सुंदर नज्म ।
उन्हें पता भी नहीं कि उनका ये कारे-बेजा
हमारी नस्लों को उनके वरसे में जंग देगा
तमाम इंसानियत की चीख़ें सुनेंगे हम-तुम
ज़मीं पे क़ह्तुर्रिज़ाल होगा.
इससे अधिक और चेतावनी क्या दे कोई । सुंदर नज्म ।
अच्छे लेखन एवं संदेश के लिये आभार
achha likha h .......
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