बुधवार, 15 अप्रैल 2009

घनाक्षरी ;जगदीश शुक्ल लखनऊ [उ.प्र.]

पुत्र प्राप्ति के प्रयास में जहाँ पे कई-कई ,पैदा हुई वहां तो विवाद बनी बेटियाँ
पुत्री में स्वरूप विंध्यवासिनी का दिखा जिन्हें ,वहां श्रद्धा-सुमन-प्रसाद बनी बेटियाँ
बड़े-बड़े कारनामे करके दिखाने लगीं ,छाप दाल युग हेतु याद बनी बेटियाँ
पिता को मुखाग्नि तक देने का निभा के धर्म,तोड़ के मिथक अपवाद बनी बेटियाँ।

बेटों संग पली-बढ़ी ,खेली-कूदी,बड़ी हुई ,पढ़-लिख कर शौर्यवान बनी बेटियाँ
गायन व वादन सी ललित कलाएं सीख,गृहकार्य दक्ष गुणवान बनी बेटियाँ
माता-पिता के लिए वे सबल सहारा बनी,सच्ची सेवा-धर्म का प्रमाण बनी बेटियाँ
धरती -गगन को भुजाओं में समेट कर ,सिन्धु नापने का अभियान बनी बेटियाँ।

व्याकुलता व्याप्त हुई चिंता की लकीरें खिंची ,जिन माता-पिता की सयानी हुई बेटियाँ
उन पर नज़रों के पहरे बिठाए गए ,कुल की प्रतिष्ठा की निशानी हुई बेटियाँ
ऊंचनीच जीवन का समझाया जाने लगा,परिवार की विचित्र प्राणी हुई बेटियाँ
वर मिला ब्याही गयीं,दोनों परिवारों बीच,स्नेह-संपदा की राजधानी हुई बेटियाँ।

नाज-नखरे सभी उठाते रहे माता-पिता ,पलको पे सदा ही बिठाई गई बेटियाँ
पाली और पोषी गई बड़े ही जतन से वे ,सुघर व निपुण बनाई गई बेटियाँ
पेट काट-काट कर दान व दहेज़ दे के ,नयनों से दूर भी बसाई गई बेटियाँ
किंतु जहाँ-जहाँ मिले लालची व फरेबी लोग, वहाँ-वहाँ घरों में जलाई गई बेटियाँ।

1 टिप्पणी:

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

बेटिओं पर प्यार लिखना
बेटिओं को दुलार लिखना
बेटियो का शौर्य लीखना
सच है आधा संसार लिखना

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