रविवार, 26 अप्रैल 2009

ग़ज़ल ;रमेश नारायण सक्सेना 'गुलशन बरेलवी' [उ.प्र.]

दोस्तों को छू लिया है दुश्मनों को छू लिया
किस्सा-ऐ -गम ने मेरे, सबके दिलों को छू लिया
घर के आँगन के शज़र ने जब फलों को छू लिया
गाँव के कुछ बालकों ने पत्थरों को छू लिया
क्या गुज़रती है दिलों पर उनसे यह पूछे कोई
मौत ने भूले से भी जिनके घरों को छू लिया
अज्म मुहकम हो अगर तो कुछ भी नामुमकिन नहीं
आबलापाई ने मेरी मंजिलों को छू लिया
ऐसा लगता है गये दिन फ़िर पलट कर आ गए
क्या मेरी ग़ज़लों ने फ़िर उनके लबों को छू लिया
कुर्बतें जब मांगने पर भी न हो पाई नसीब
हमने भी थक हार कर फ़िर मैकदों को छू लिया
दैर ही में उस को पाया और न काबे ही में जब
हम फकीरों ने बयाबाँ रास्तों को छू लिया
हम को उन में भी खुदा का अक्स आया है नजर
आस्था से हम ने गुलशन जिन बुतों को छू लिया।

3 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल पेश की है आपने शुक्रिया.

अनिल कान्त ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल है ....बस दिल वाह वाह करने को कहता है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

ऐसा लगता है गये दिन फ़िर पलट कर आ गए क्या मेरी ग़ज़लों ने फ़िर उनके लबों को छू लिया

रमेशजी
बहुत ही नये ढंग से कही है बात पुरानी
गाँव खुदा लव छूकर हो बैठे रूमानी

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