दूर कितने ,करीब कितने हैं
क्या बताएं रकीब कितने हैं
ये है फेहरिस्त जाँनिसारों की
तुम बताओ सलीब कितने हैं
तीरगी से तो दूर हैं लेकिन
रौशनी के करीब कितने हैं
कोई दिलकश सदा नहीं आती
कैद में अंदलीब कितने हैं
मैकशी पर बयान देना है
होश वाले अदीब कितने हैं
जिसको चाहें उसी से दूर रहें
ये सितम भी अजीब कितने हैं
अपनी खातिर नहीं कोई लम्हा
हम भी आख़िर गरीब कितने हैं।
2 टिप्पणियां:
अलका जी
बहुत अच्छी ग़ज़ल है
"अपनी खातिर नहीं कोई लम्हा
हम भी आख़िर गरीब कितने हैं। "
- विजय
वाह क्या बात है सुन्दर शेर, खूबसूरत गजल
आपका वीनस केसरी
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