सोमवार, 11 मई 2009

ग़ज़ल ; अंसार कम्बरी

किसी के ख़त का बहुत इन्तेज़ार करते हैं
हमारी छत पे कबूतर नहीं उतरते हैं


खुशी के , प्यार के , गुल के ,बहार के लम्हे
हमें मिले भी तो पल भर नहीं ठहरते हैं।
किसी तरफ से भी आओगे , हमको पाओगे
हमारे घर से सभी रास्ते गुज़रते हैं ।
ये जानता है समंदर में कूदने वाला
जो डूबते हैं , वही लोग फ़िर उभरते हैं।
कहीं फसाद , कहीं हादसा , कहीं दहशत
घरों से लोग निकलते हुए भी डरते हैं।

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