गुरुवार, 7 मई 2009

गजल ; अंसार कम्बरी ,कानपुर

आप कहते हैं दूषित है वातावरण
पहले देखें स्वयं अपना अंतःकरण

कितना संदिग्ध है आपका आचरण
रात इसकी शरण , प्रात उसकी शरण


आप सोते हैं सत्ता की मदिरा पिये
चाहते हैं कि होता रहे जागरण


फूल भी हैं यहाँ , शूल भी हैं यहाँ
देखना है कहाँ पर धरोगे चरण


आप सूरज को मुट्ठी में दाबे हुये
कर रहे हैं उजालों का पंजीकरण


शब्द हमको मिले ,अर्थ वो ले गये
न इधर व्याकरण, न उधर व्याकरण


लीक पर हम भी चलते मगर कम्बरी
कौन है ऐसा जिसका करें अनुसरण

2 टिप्‍पणियां:

Deepak Tiruwa ने कहा…

achchhi lagi aapki ghazal
mukhtalif kafiya ...shandar

वीनस केसरी ने कहा…

कितना संदिग्ध है आपका आचरण
रात इसकी शरण , प्रात उसकी शरण


आप सोते हैं सत्ता की मदिरा पिये
चाहते हैं कि होता रहे जागरण


सुन्दर गजल
वीनस केसरी

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