अदालत तक कहाँ ये बात मेरे यार जाती है
कि अक्सर तर्क के आगे सचाई हार जाती है
वो अपने दौर की उपलब्धियां कुछ यूं गिनाते हैं
बड़े आराम से अब तो वहां तक कार जाती है
भले ऊपर ही ऊपर बेईमानी खूब फलती हो
मगर अंदर ही अंदर आदमी को मार जाती है
निभा पाया नहीं कोई इसे इक बार भी शायद
तिरंगे की कसम खाई मगर हर बार जाती है
वो अपराधीकरण पर बस यही इक बात कहते हैं
अगर उनकी न मानें तो मेरी सरकार जाती है
थपेड़े खाती रहती है मेरे विश्वास की नैया
कभी इस पार आती है, कभी उस पार जाती है
भला किस तरह पहुचेंगी वहां मजलूम की आहें
जहाँ तक सिर्फ पायल की 'असर' झंकार जाती है.
बुधवार, 27 जनवरी 2010
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12 टिप्पणियां:
उम्दा गज़ल.धन्यवाद्
ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।
भले ऊपर ही ऊपर बेईमानी खूब फलती हो
मगर अंदर ही अंदर आदमी को मार जाती है
सत्य वचन जी, बहुत सुंदर लगी अप की यह गजल
धन्यवाद
सच को आईना दिखाती हुई बेहतरीन गज़ल।
मोहतरमा अलका साहिबा, आदाब
पूरा 'असर' कर गई अरविंद साहब की ग़ज़ल
अदालत तक कहाँ ये बात मेरे यार जाती है
कि अक्सर तर्क के आगे सचाई हार जाती है
बहुत खूबसूरत मतला है.
हर शेर दाद का हक़दार है
खास तौर पर ये शेर कितना प्यारा हुआ है-
थपेड़े खाती रहती है मेरे विश्वास की नैया
कभी इस पार आती है, कभी उस पार जाती है
और मक़ता. वाह-
भला किस तरह पहुचेंगी वहां मजलूम की आहें
जहाँ तक सिर्फ पायल की 'असर' झंकार जाती है.
असर साहब को लेखन और आपको संकलित करने के लिये
बहुत बहुत बधाई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बहुत ही शानदार और सामयिक गजल । जबरदस्त शेर ,खासकर ये-
वो अपराधीकरण पर बस यही इक बात कहते हैं
अगर उनकी न मानें तो मेरी सरकार जाती है
Kamaaaal! Bahaut hi saTeeK.
अदालत तक कहाँ ये बात मेरे यार जाती है
कि अक्सर तर्क के आगे सचाई हार जाती है
निभा पाया नहीं कोई इसे इक बार भी शायद
तिरंगे की कसम खाई मगर हर बार जाती है
भला किस तरह पहुचेंगी वहां मजलूम की आहें
जहाँ तक सिर्फ पायल की 'असर' झंकार जाती है
वाह कमाल की गज़ल है हर शेर उम्दा और भाव समाज और राजनीति का आईना हैं
अरविन्द असर जी को बहुत बहुत बधाई
अरविन्द असर साहब की ग़ज़ल पसंद आयी..
भले ऊपर ही ऊपर बेईमानी खूब फलती हो
मगर अंदर ही अंदर आदमी को मार जाती है
Umda prastuti...wah..wah !!
भले ऊपर ही ऊपर बेईमानी खूब फलती हो
मगर अंदर ही अंदर आदमी को मार जाती है ।
वाह ! वाह !वाह !
शब्दों को बड़ी ही खूबसूरती से पाया है, सभी भाव बखूबी व्यक्त हो रहे है ।
बोहोत ही खूबसूरत ग़ज़ल ।
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