आप सभी को पता होगा कि सर्वत साहब इन दिनों अपने ब्लॉग पर गजलें पोस्ट नहीं कर रहे हैं. मामला क्या है, यह तो वही जानें. मुझे अभी एक कवि गोष्ठी में शेर सुनाते मिल गए और मैं ने उन्हें लिख लिया. उनकी आज्ञा लिए बिना पोस्ट करने का साहस, नहीं दुस्साहस आपकी सेवा में प्रस्तुत है-
जो हम को थी, वो बीमारी लगी ना!
हंसी तुम को भी सिसकारी लगी ना!
सफर आसान है, तुम कह रहे थे
कदम रखते ही दुश्वारी लगी ना!
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना!
मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!
21 टिप्पणियां:
acche sher padane ka avsar pradan kiya usake liye dhanyvad ..........
अच्छी रचना !!
अलका जी, आदाब
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन.
खास तौर पर..ये दो शेर
सफर आसान है, तुम कह रहे थे
कदम रखते ही दुश्वारी लगी ना!
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
खूब सारी दाद सर्वत साहब तक पहुंचाने की मेहरबानी कीजियेगा...
gazal 'sarwat' ki,
har ik sher umdaa
parakh ye aapko
payaari lagi naa...!!
मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!
भाई जबाब नही सर्वत साहब अजी दवा भी देतो हो ओर फ़िर जख्म भी, सच कहूं तो आप की यह गजल बहुत अच्छी लगी.
धन्यवाद
सर्वत साहब को पढ़ना हमें हमेशा भाता रहा है और एक मुलाक़ात कि ख्वाहिश है आप ने उनको सामने सूना है जान कर जलन हो रही है
मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!!
वाह! सर्वत साहब के क्या कहने! आभार आपका.
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
बेहतरीन शेरों को पढवाने के लिये साधुवाद
क्या बात है .... बहुत बढ़िया !
समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना!
हम तो दीवाने हैं सर्वत साहब की ग़ज़लों के ..... बहुत अच्छा किया इसको पढ़वाने कर ... शुक्रिया ...
ग़ज़ब के शेर हैं .. यथार्थ से झूझते हुवे .....
वाह! सर्वत साहब के क्या कहने!.... बहुत बढ़िया !........
बहुत बढ़िया, खासकर निम्न पंक्तियाँ:
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
सफर आसान है, तुम कह रहे थे
कदम रखते ही दुश्वारी लगी ना!
waah kya sher kaha hai
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
ahaaaaa kitna gahra sher
jab bhi kisi ko chhya doge
aari lagne ka dar hai
Sarwat ji hi kah sakte hain aisa sher ...........
समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना!
मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!
waah waah
khoob gazal hui hai
aise hi nayaab nageene suna diya kariye
unhone to marhoom karna shuru kar diya hai
ab aap hi kuch hamara khyaal rakhe
सफर आसान है, तुम कह रहे थे
कदम रखते ही दुश्वारी लगी ना!
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!
क्या बात है बहुत अच्छी लगी गज़ल । शायद सर्बत साहिब ब्लाग जगत से नाराज़ हैं तभी तो बाहर गज़ले4ं सुना रहे हैं और हमे नही। लोग हम से आ कर बता रहे हैं क्या ये अच्छा लगता है घर की बात घर मे ही होनी चाहिये ना
कोई है जो उन्हें मना कर लाये???????????? सर्बत साहिब अगर आप कहीं सुन रहे हैं तो मेहर्बानी कर के लौट आईये --- आपकी गज़लें पढ कर तो सीख रहे थे। शुभकामनायें
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
baap re baap adbhut....is par kuchh kahane kee hamaari taab hi nahin...!!
Happy holi........
समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना!
मरे कितने, ये छोड़ो, यह बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना!
Aisa teekshn sarwat ji hi likh sakte hain..achha kiya jo aapne ye rachna post kar dee!
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
वाह अलका जी कमाल की गज़ल ।
Really very nice. Thanks for providing here.
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज इक आरी लगी ना!
समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना!
kya baat hai vaah! vaah!
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