सोमवार, 5 अप्रैल 2010

गीत -शरद मिश्र 'सिन्धु'

मातृभूमि कातर नयनों से पल पल किसे निहारती
देशवासियों !बढ़ो कि देखो ,धरती तुम्हे पुकारती.
       जाति-पाति की राजनीति ने काटा-छाँटा बहुत सुनो
        मानवता के द्वय कपोल पर मारा चांटा बहुत सुनो
        यादव, कुर्मी, हरिजन, पंडित और मुराई, लोधी हों ,
        ठाकुर, लाला ,बनिया हो या किसी जाति के जो भी हों,
रहें प्रेम से सब मिलकर भारत माता मनुहारती .

       हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पंथों को लड़वाते हैं 
        रक्तपिपासु भेड़िये तो सत्ताहित रक्त बहाते हैं 
        धर्म एक मानव का जिसमें रहें प्रेम से जन सारे 
       धर्म नहीं कहलाता जो आँखों में भरता अंगारे 
 व्यर्थ लड़ाने की मंशा विषधर बनकर फुंफकारती .

        तुमने अंग्रेजों से आजादी को छीना ,गर्व किया
        लाल बहादुर ,पन्त ,जवाहर ने अपना सर्वस्व दिया
        बलिदानों की परिपाटी में नाम तुम्हारा अमित रहा
        जन्मभूमि की रक्षाहित तो रक्त तुम्हारा सतत बहा
नित राजीव और गांधी दे रक्त,उतारें आरती.

        सागर की ड्योढी से कश्मीरी केसर की क्यारी तक
        असम और अरुणांचल के संग हँसे कच्छ की खाड़ी तक
        विन्ध्य, वैष्णव, मैहर की है शक्ति शिराओं -धमनी में
        नहीं दूसरा जो हो तुम सा उत्सर्गी इस अवनी में
श्याम, राम, शंकर की थाती जन-गन-मन को तारती .

         मानवता का परचम फहरे हो जय हो जय का जयगान
         सम्प्रदाय की विषबेलें ना करें कलंकित अब सम्मान
         हाथ पकड़ बढ़ चलें आज हम गली-गली में हो जयघोष 
         जय हो - जय हो से गुंजित हो दें नेतृत्व सजग निर्दोष 
 आज प्रकृति भारत माता का मंदिर सतत निखारती.
लखनउ
9415582926,
9794008047

8 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

अति सुंदर ,सम साम्यिक आव्हान ,भारत मां के मन की बात को अत्यंत उपयुक्त शब्दों में व्यक्त किया ग्या है

मानवता का परचम फहरे हो जय हो जय का जयगान
सम्प्रदाय की विषबेलें ना करें कलंकित अब सम्मान
हाथ पकड़ बढ़ चलें आज हम गली-गली में हो जयघोष
जय हो - जय हो से गुंजित हो दें नेतृत्व सजग निर्दोष
आज प्रकृति भारत माता का मंदिर सतत निखारती.

बुहुत बढ़िया समापन !
रचनाकार को बधाई का पूरा अधिकार है

Apanatva ने कहा…

bahut sunder desh ko samarpit sunder sandesh detee aapkee rachana bahut pasand aaee....

मनोज कुमार ने कहा…

देशभक्ति की कविता जो जोश और संदेश दोनों है। हमें ऐसा समाज बनाना है जिसमें जाति, जातिसूचक शब्‍द, संकेत, प्रतीक भाव, आंतरिक संस्‍कार आदि का सर्वथा जमाव हो। जिसमें व्‍यक्ति की पहचान व्‍यक्तिगत हो जाति में नहीं । पढ़ने वाले में नैतिक ऊहापोह पैदा करे, तयशुदा प्रपत्तियां हिला दे ऐसी रचना कम ही मिलती हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद

kavi surendra dube ने कहा…

देश भक्ती से ओतप्रोत रचना के लिए साधुवाद

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

desh bhakti ka jajba acha laga!!!!

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! देशभक्ति पर सुन्दर प्रस्तुती! बहुत बहुत बधाई!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

मानवता का परचम फहरे हो जय हो जय का जयगान
सम्प्रदाय की विषबेलें ना करें कलंकित अब सम्मान
देशभक्ति और मानवता का संदेश देने वाली उत्कृष्ठ रचना.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

देश प्रेम का ज्वार उठाती .... लाजवाब रचना ... बाजू फड़कने लगती हैं ...

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