शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

गज़ल

गज़ल की दुनिया में, बल्कि शायरी के संसार में संजय मिश्रा 'शौक़' वक जाना-पहचाना नाम है. पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ-लेख प्रकाशित होते रहते हैं. संजय मिश्रा 'शौक़' नई पीढ़ी के उन गिने-चुने शायरों में एक हैं जिन्होंने शायरी के लिए न सिर्फ उर्दू सीखी बल्कि आज बहुत से नौजवान खुद उनसे उर्दू और शायरी की तालीम हासिल कर रहे हैं.
'साहित्य हिन्दुस्तानी' को फख्र है कि उनकी कुछ रचनाएँ दस्तयाब हो गई हैं, उनमे से एक गज़ल पेश है:


अजमतों के बोझ से घबरा गए 
सर उठाया था कि ठोकर  खा गए 


ले तो आए हैं उन्हें हम राह पर 
हाँ, मगर दांतों पसीने आ गए 


भूख इतनी थी कि अपने जिस्म से 
मांस खुद नोचा, चबाया, खा गए 


कैदखाने से रिहाई यूं मिली 
हौसले जंजीर को पिघला गए 


बज गया नक्कारा-ए-फ़तहे-अजीम 
जंग से हम लौट कर घर आ गए 


इक नई उम्मीद के झोंके मेरे 
पाँव के छालों को फिर सहला गए 


उन बुतों में जान हम ने डाल दी 
दश्ते-तन्हाई में जो पथरा गए.

छीन ली जब ख्वाहिशों की ज़िन्दगी
पाँव खुद चादर के अंदर आ गए 

लखनऊ.
 सेल- ०९४१५०५१९७३. 

12 टिप्‍पणियां:

तिलक राज कपूर ने कहा…

अगर लोग आपसे सलाह लेते हैं तो ग़लत नहीं हैं। शाइरी को समझ कर की गई शाइरी का रंग ही कुछ और होता है। हर शेर उम्‍दा है। बधाई।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

कैदखाने से रिहाई यूं मिली
हौसले जंजीर को पिघला गए

हौसलों की ये इंतहा तो बेहद हौसलाबख़्श है

बज गया नक्कारा-ए-फ़तहे-अजीम
जंग से हम लौट कर घर आ गए

इक नई उम्मीद के झोंके मेरे
पाँव के छालों को फिर सहला गए

उन बुतों में जान हम ने डाल दी
दश्ते-तन्हाई में जो पथरा गए.

पथरा गए का मुनासिब इस्तेमाल
हर शेर उम्मीदों से लबरेज़ और हौसला बख़्शने वाला है
ज़िंदगी में सब से ज़्यादा इसी की ज़रूरत होती है ,मायूसी तो इंसान को तोड़ देती है
शायर मुबारकबाद का मुस्तहक़ है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल .... कमाल के तल्ख़ शेर हैं ... दाद निकलती है हर शेर पर ....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

कैदखाने से रिहाई यूं मिली
हौसले जंजीर को पिघला गए
वाह....ये हुआ है तारीख़ी शेर....

इक नई उम्मीद के झोंके मेरे
पाँव के छालों को फिर सहला गए
क्या बात है साहब...कमाल की शायरी है
शायर के साथ साथ
उनका कलाम पढ़वाने के लिए
आपको भी मुबारकबाद.

Gaurav Singh ने कहा…

Aap ke kahe hue shabdon ke liye Shabd nahi.....dil tak pohochati hai baat....

Gaurav Singh ने कहा…

Aapse milne ki Kaamna hai....

Gaurav Singh ने कहा…

Aapse milne ki Kaamna hai....

Parul kanani ने कहा…

its beautiful..! :)

श्रद्धा जैन ने कहा…

इक नई उम्मीद के झोंके मेरे
पाँव के छालों को फिर सहला गए


छीन ली जब ख्वाहिशों की ज़िन्दगी
पाँव खुद चादर के अंदर आ गए

ahaaaaaaaaa kya sher ne ....
man rahat se bhar gaya

सूबेदार ने कहा…

कबिता क़े भव बहुत सुन्दर है .
मनमोहक कबिता
धन्यवाद

सूबेदार ने कहा…

कबिता क़े भव बहुत सुन्दर है .
मनमोहक कबिता
धन्यवाद

हैरान परेशान ने कहा…

"पाँव" खुद चादर के अंदर आ गए".
ज़िन्दगी का इतना गहरा फलसफा और मात्र १३ शब्दों में. संजय मिश्रा 'शौक़' के कुछ गद्य लेख पढ़े थे और उनसे प्रभावित रहा हूँ. वतन से दूर होने के कारण हिंदी-उर्दू साहित्य मिल नहीं पाता. इस लिए शौक़ साहब की शायरी से अनजान था. एक मित्र ने उनकी ५ रचनाएँ दिखाईं तो मैं खो सा गया.
अभी इस ब्लॉग पर शौक़ साहब नजर आए तो खुद को रोक नहीं सका. मैं पूरी गजल के सम्मोहन में डूब गया हूँ.
शायद शौक़ साहब की कुछ और गजलें इस ब्लॉग पर पोस्ट हों, इस उम्मीद के साथ मेरा आना लगा रहेगा.

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